#सौतेलापन_का_अनोखा_उपन्यास।
उधर राम का प्यार परवान चढ़ रहा था,इधर आशा की लालच।
आशा ने मन ही मन विचार कर रही थी कि राम को मदन के नज़रों से कैसे गिराया जय।
एक दिन उसे एक आइडिया मिल ही गया।
आइडिया ऐसा की इंसानियत को शर्मसार कर दे।
आशा ने रानी को मजबूत कर दिया कि आज तुम पापा को बोलेगी मेरे ऊपर भैया गलत नजर बहुत दिनों से डालते आ रहे है। आज तो मै बच गई अगर समय पर मा नहीं आती तो मै कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रहती।
हुआ भी ऐसा जब मदन रात्रि को घर आए सब जस का तस था। उधर राम को कुछ मालूम नहीं था। आशा ने सारी मनगढ़ंत कहानी सुनाई।
मदन का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया।
राम को घसीट कर घर से बाहर कर दिया ।
जाओ आज मै तुम्हे अपने जायदाद से बेदखल करता हू ।
पापा हुआ क्या?तुम मुझे पापा मत बोलना तुमने मुझे पापा कहने का अधिकार खो दिया।
निकल जा यहां से नहीं तो बहुत बार होगा।
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राम पिता जी के गुस्सा को देखकर घर से निकाल गाय।
रात अपने एक मित्र के यहां गुजारा।
इधर इस डाय न को इतना से मन नहीं भरा ।
सुबह होते ही अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन जा कर राम के खिलाफ मुकदमा कर दी ।
मुकदमा दायर होने के बाद पुलिस राम को उठा कर ले गया।तब राम को पता चला कि हमें घर से बाहर क्यों निकाला गाय?
इधर अब आशा बहुत खुश थी ।।
राम उदास सा रहने लगा।
आगे पार्ट३ में
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