भारत माता

इस कविता के माध्यम से भारत के दशा को व्यक्त किया गया है।

भारतमता ग्रामवासिनी

खेतों में फैला है श्यामक

धूल भरा मैला आंचल

गंगा यमुना में आंसू जल

मिट्टी की प्रतिमा

उदासिनी!

दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन ,

आधारों में चिर नीरव रोदन,

युग युग के तम से विष्णन मन

वह अपने घर में

प्रवसिनी!

तीस कोटि संतान नग्न तन,

अर्ध क्षुधित शोषित निरस्त्रजन,

मूढ़ , असभ्य ,अशिक्षित ,निर्धन,

नतमस्तक तरू तल निवासिनी !

स्वर्ण शस्य पर पद तल लूठित,

धरती सा सहिष्णु मन कुंठित,

कुंदन कंपित अधर मौन स्मित,

राहु ग्रसित

शरदेंदू हासिनी!

भारत माता ग्रामवासिनी खेतों में फैला श्यामल धूल भरा मैला सा आंचल ।

चिंतित भृकुटी क्षितिज तिमिरांकित ,

नामित नयन नभ वाष्पा – च्छा- दित,

आनान श्री छाया शशि उपमित,

ज्ञान मूढ़

गीता प्रकाशिनी!

सफल आज उसका तप संयम,

पीला अहिंसा स्टन्य सूधोपम,

हरती जन मन भय भव तम भ्रम

जग जननी

जीवन विकासिनी!

Edited by – Sajjan Kumar

The world of creation. द्वारा प्रकाशित

Student leader ,founder of R.R.P.S Ramnagar and part time poet.

2 विचार “भारत माता&rdquo पर;

टिप्पणी करे

Design a site like this with WordPress.com
प्रारंभ करें