कोटा में फंसे छात्रों को बिहार आने की अनुमति दें नीतीश कुमार।

24 घंटे के अंदर कोटा में फसें बिहार के छात्रों को बिहार आने का अनुमति दें नीतिश कुमार नहीं तो ऑल इंडिया स्टूडेंट यूनियन के साथी कल 12 बजे दिन में अपने अपने घर पर नीतिश कुमार और छोटका मोदी का करेगा पुतला दहन : गौतम आनंद AISU
क्या बिहार के छात्र मजदूर इतने अभागे हैं नीतिश कुमार बिहार आने का परमिशन दे रहे हैं। कोटा से हर राज्य के छात्रों को वहाँ की सरकार अपने अपने राज्य भेज रही है सभी राज्य अपने छात्र को अपने राज्य में आने दे रहे हैं किंतु बिहार के छात्र इतने अभागे है क्या नीतीश जी जो आप कोटा दिल्ली में फसें बिहार के भाई बहन को बिहार में स्वीकार नहीं कर रहे हैं। जब राजस्थान की सरकार अपने खर्ज पर भेज रही है तो दिक्कत कहाँ है नीतिश कुमार सुशील मोदी जी । आप दोनों अपने आँख को डिटोल या तेजाब से धो नहीं लिए हो बेशर्मी की भी हद होती है । अभी से 24 घंटे के अंदर बिहार के छात्र छात्राओं को बिहार आने की स्वीकृति दीजिये नीतिश कुमार जी छात्रों को आने के बाद अपने अपने जिले में 14 दिन डॉक्टर के निगरानी में रखिये कोई दिक्कत नहीं है । जो भी नियम है कोरोना से संबंधित उसका पालन करवाइये कोई दिक्कत नहीं है लेकिन 24 घण्टे के अंदर बिहार के छात्रों को बिहार भेजने की अनुमति राजस्थान सरकार को प्रदान कीजिये। नीतिश जी मोदी जी जवाब दीजिये क्या सिर्फ आपके विधायक का बेटा बेटी हीं किसी का बेटा है । बिहार के लाखों लोगों का बेटा बेटी बिहार का बेटा बेटी नहीं है ? खैर आप दोनों का बस इतना सा दोष है कि आप दोनों ने बिहार की शिक्षा व्यवस्था को बिहार 15 वर्षों के दौरान बिहार के छात्रों के पढ़ने लायक नहीं छोड़ा । अपने बच्चों के इस विकट स्थिति में फसें होने के बाद भी अगर इन छात्र छात्राओं के माता पिता भाई दोस्त अपने परिवार के सदस्य जिनको अपने बच्चों के जीवन की चिंता है का किसी ने घर बैठे सरकार से सवाल पूछने का हिम्मत जुटाया है क्या । किसी ने सरकार के इस जाहिलियत पर विरोध दर्ज किया है नहीं करेगा भी क्यों , क्यों की उसके बेशर्म सरकार की ज्यादती होगी बदनामी होगी बच्चों के अभिभावक को भी अपने बच्चों को बिहार बुलाने के लिए आवाज उठाने की जरूरत है । बिहार की सरकार सही है या आपके बच्चे सही है यह बिहार के लाखों माता पिता भाई को तय करना होगा। अपने बच्चों को बिहार बुलाने के लिए आवाज उठाना होगा। कल 12 बजे तक छत्रों को आने का नहीं मिलेगा आदेश तो सभी अभिभावक उनके दोस्त भाई एवं छात्र हितों की बात करने वाले सभी साथी सरकार के तानाशाही फैसले के खिलाफ अपने अपने घरों पर बिहार के मुख्यमंत्री का पुतला जला का विरोध जरूर करें। #justice #for #bihari #student #kota

A I S U
Chhatr neta Sajjan Kumar.

Love at first sight of Rajeev Gandhi.

Rajeev Gandhi and Soniya Gandhi.
A few moments of Rajeev Gandhi and Soniya Gandhi.

चौड़ा माथा, गहरी आंखे, लम्बा कद.. और वो मुस्कान। जब मैंने भी उन्हें पहली बार देखा- तो बस देखते रह गयी। साथी से पूछा- कौन है ये खूबसूरत लड़का। हैंडसम!! हैंडसम कहा था मैंने,साथी ने बताया वो इंडियन है। पण्डित नेहरू की फैमिली से है। मैं देखती रही .. पंडित नेहरू की फैमिली के लड़के को।कुछ दिन बाद, यूनिवर्सिटी कैंपस के रेस्टोरेन्ट में लंच के लिए गयी। बहुत से लड़के थे वहां। मैंने दूर एक खाली टेबल ले ली। वो भी उन दूसरे लोगो के साथ थे। मुझे लगा, कि वह मुझे देख रहे है। नजरें उठाई, तो वे सचुच मुझे ही देख रहे थे। क्षण भर को नजरे मिली, और दोनो सकपका गए। निगाहें हटा ली, मगर दिल जोरो से धड़कता रहा।अगले दिन जब लंच के लिए वहीं गयी, वो आज भी मौजूद थे। कहीं मेरे लिए इंतजार …!!! मेरी टेबल पर वेटर आया, एक वाइन को बॉटल लेकर.. और साथ मे एक नैपकिन, जिस पर एक कविता लिखी थी। “द वन”…वो पहली नजर का प्यार था। वो दिन खुशनुमा थे। वो स्वर्ग था। हम साथ घूमते, नदियों के किनारे, कार में दूर ड्राइव, हाघो में हाथ लिए सड़कों पर घूमना, फिल्में देखना। मुझे याद नही की हमने एक दूसरे को प्रोपोज भी किया हो। जरूरत नही थी, सब नैचुरल था, हम एक दूसरे के लिए बने थे। हमे साथ रहना था। हमेशा ..उनकी मां प्रधानमंत्री बन गयी थी। जब इंग्लैंड आयी तो राजीव ने मिलाया। हमने शादी की इजाजत मांगी। उन्होंने भारत आने को कहा।भारत … ?? ये दुनिया के जिस किसी कोने में हो। राजीव के साथ कहीं भी रह सकती थी। तो आ गयी। गुलाबी साड़ी, खादी की, जिसे नेहरू ने बुना था, जिसे इंदिरा ने अपनी शादी में पहना था, उसे पहन कर इस परिवार की हो गयी। मेरी मांग में रंग भरा, सिन्दूर कहते हैं उसे। मैं राजीव की हुई, राजीव मेरे, और मैं यही की हो गयी।–दिन पंख लगाकर उड़ गए। राजीव के भाई नही रहे। इंदिरा को सहारा चाहिए था। राजीव राजनीति में जाने लगे। मुझे नही था पसंद, मना किया। हर कोशिश की, मगर आप हिंदुस्तानी लोग, मां के सामने पत्नी की कहां सुनते है। वो गए, और जब गए तो बंट गये। उनमें मेरा हिस्सा घट गया।फिर एक दिन इंदिरा निकलीं। बाहर गोलियों की आवाज आई। दौड़कर देखा तो खून से लथपथ। आप लोगों ने छलनी कर दिया था। उन्हें उठाया, अस्पताल दौड़ी, उन खून से मेरे कपड़े भीगते रहे। मेरी बांहों में दम तोड़ा। आपने कभी इतने करीब से मौत देखी है?उस दिन मेरे घर के एक नही, दो सदस्य घट गए। राजीव पूरी तरह देश के हो गए। मैंने सहा, हंसा, साथ निभाया। जो मेरा था… सिर्फ मेरा, उसे देश से बांटा। और क्या मिला। एक दिन उनकी भी लाश लौटी। कपड़े से ढंका चेहरा। एक हंसते, गुलाबी चेहरे को लोथड़ा बनाकर लौटा दिया आप सबने।उनका आखरी चेहरा मैं भूल जाना चाहती हूं। उस रेस्टोरेंट में पहली बार की वी निगाह, वो शामें, वो मुस्कान … बस वही याद रखना चाहती हूं।इस देश मे जितना वक्त राजीव के साथ गुजारा है, उससे ज्यादा राजीव के बगैर गुजार चुकी हूं। मशीन की तरह जिम्मेदारी निभाई है। जब तक शक्ति थी, उनकी विरासत को बिखरने से रोका। इस देश को समृद्धि के सबसे गौरवशाली लम्हे दिए। घर औऱ परिवार को संभाला है। एक परिपूर्ण जीवन जिया है। मैंने अपना काम किया है। राजीव को जो वचन नही दिए, उनका भी निबाह मैंने किया है।राजनीति है, सरकारें आती जाती है। आपको लगता है कि अब इन हार जीत का मुझ पर फर्क पड़ता है। आपकी गालियां, विदेशी होने की तोहमत, बार बाला, जर्सी गाय, विधवा, स्मगलर, जासूस … इनका मुझे दुख होता है? किसी टीवी चैनल पर दी जा रही गालियों का दुख होता है, ट्विटर और फेसबुक पर अनर्गल ट्रेंड का दुख होता है?? नही, तरस जरूर आता है।याद रखिये, जिससे प्रेम किया हो, उसकी लाश देखकर जो दुख होता है। इसके बाद दुख नही होता। मन पत्थर हो जाता है। मगर आपको मुझसे नफरत है, बेशक कीजिये। आज ही लौट जाऊंगी। बस, राजीव लौटा दीजिए।औऱ अगर नही लौटा सकते , तो शांति से, राजीव के आसपास, यहीं कहीं इसी मिट्टी में मिल जाने दीजिए। इस देश की बहू को इतना तो हक मिलना चाहिए शायद..आज के जाहिलों द्वारा सोनियां गाँधी जी के ऊपर भद्दी टिपण्णी भारतीय संस्कृति सभ्यता के विरुद्ध है ।सुनकर यह तो सामने आ गया कि लालू यादव जी सुरु के दिनों में कॉंग्रेस के धुर विरोधी रहे फिर भी जो सम्मान और साथ भारत की बहू होने के नाते सोनियां जी को दिया सायद हीं खुले मंच से किसी और ने वो सम्मान देने का हिम्मत जुटाया हो। विचारधारा के स्तर पर मैं भी विरोधी रहता हूँ देश के लिये इतने त्याग देने वाली वो भी किसी की बीबी और माँ है । यह सरासर अन्याय है । आज या कल ये उन्माद बंद नहीं हुआ तो भुगतना तो भारत भूमि को पड़ेगा । उन्मादी सोच तो उन्माद फैलाकर मरेंगे और शमसान में जल जाएगा किंतु उन्माद का आग जलता रह जाएगा। दुखद ।~Manish Singh

गौतम आनंद ने कशा सत्ताधरियों पर तंज।

लोक डाउन में दना के लिए तोड़ा दम।

ये भाई अपने बिहार के बेगूसराय से थे जहाँ के सांसद सबसे कट्टर हिन्दू और इसके कथित रक्षक गिरगिट राज जी के क्षेत्र से राम जी है । उसी बेगूसराय से एक भाषण वीर सामंती कॉमरेड जो कोरोना से पूर्व आजादी गैंग चला रहे थे अभी पूर्ण रूप से गायब है और खुद की आजादी का मजा उठा रहे होंगे । ये बेचारे दिल्ली में मजदूरी करते थे जब लॉक डाउन हुआ तो पैदल अपने घर जा रहे थे, लेकिन बनारस में आते आते इनकी जिंदगी इनका साथ छोड़ गई। सबसे ज्यादा दुःख देनी वाली बात ये है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इनके पेट में अन्न का दाना तक नहीं निकला, सरकार दावे बहुत कर रही है लेकिन जमीन पर उनका एक परसेंट भी नहीं दिख रहा।
जरूर पाप लगेगा बाड़ी बाड़ी से सत्ता का सुख भोगने वाले सत्ताधीशों को । यह न्यू इंडिया मुबारक हो भाई।
बेशर्म शासन बेशर्म राजनीति ।

ऑल #इंडिया #स्टूडेंट #यूनियन

मृत राम।

इससे हम अंदाजा लगा सकते है कि हमारे देश के हालत पर बड़े बड़े वादे करने वाले कुर्ता धारी अपने वादे के कितने पक्के है।

वक्त रहते सचेत होने की जरूरत है।नहीं तो अंजाम इससे भी भयानक होगा।

पृथ्वी दिवस( Earth Day)(地球日)yer günü, Ημέρα της Γης

Earth pic.

पृथ्वी दिवस पृथ्वी दिवस का ध्वoज आधिकारिक नाम Fajitas a hm अन्य नाम HYDj a hm JJ JJ jk उद्देश्य पर्यावरण सुरक्षा के समर्थन में आरम्भ 1970 तिथि 22 अप्रैल आवृत्ति वार्षिक पृथ्वी दिवस एक वार्षिक आयोजन है, जिसे 22 अप्रैल को दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्थन प्रदर्शित करने के लिए आयोजित किया जाता है। इसकी स्थापना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने 1970 में एक पर्यावरण शिक्षा के रूप की थी। अब इसे 192 से अधिक देशों में प्रति वर्ष मनाया जाता है। यह तारीख उत्तरी गोलार्द्ध में वसंत और दक्षिणी गोलार्द्ध में शरद का मौसम है। जब बार से चुनगी आते थे संयुक्त राष्ट्र में पृथ्वी दिवस को हर साल मार्च एक्विनोक्स (वर्ष का वह समय जब दिन और रात बराबर होते हैं) पर मनाया जाता है, यह अक्सर 20 मार्च होता है, यह एक परम्परा है जिसकी स्थापना शांति कार्यकर्ता जॉन मक्कोनेल के द्वारा की गयी। यह पृथ्वी का बडा ही मानक जाने बाला दिवस है।[1] महत्व 22 अप्रैल दिवस का इतिहास संपादित करें जेराल्ड नेल्सन की घोषणा संपादित करें सितम्बर 1969 में सिएटल, वाशिंगटन में एक सम्मलेन में विस्कोंसिन के अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन घोषणा की कि 1970 की वसंत में पर्यावरण पर राष्ट्रव्यापी जन साधारण प्रदर्शन किया जायेगा. सीनेटर नेल्सन ने पर्यावरण को एक राष्ट्रीय एजेंडा में जोड़ने के लिए पहले राष्ट्रव्यापी पर्यावरण विरोध की प्रस्तावना दी। “यह एक जुआ था,” वे याद करते हैं “लेकिन इसने काम किया।”[3] जानेमाने फिल्म और टेलिविज़न अभिनेता एड्डी अलबर्ट ने पृथ्वी दिवस, के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी.[4] हालांकि पर्यावरण सक्रियता का सन्दर्भ में जारी इस वार्षिक घटना के निर्माण के लिए अलबर्ट ने प्राथमिक और महत्वपूर्ण कार्य किये, जिसे उसने अपने सम्पूर्ण कार्यकाल के दौरान प्रबल समर्थन दिया, लेकिन विशेष रूप से 1970 के बाद, एक रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी दिवस को अलबर्ट के जन्मदिन, 22 अप्रैल, को मनाया जाने लगा, एक स्रोत के अनुसार यह गलत भी हो सकता है। अलबर्ट को टीवी शो ग्रीन एकर्समें प्राथमिक भूमिका के लिए भी जाना जाता था, जिसने तत्कालीन सांस्कृतिक और पर्यावरण चेतना पर बहुमूल्य प्रभाव डाला।[3] संकल्पात्मक विकास संपादित करें रोन कोब्ब ने एक पारिस्थितिक प्रतीक का निर्माण किया, जिसे बाद में पृथ्वी दिवस के प्रतीक के रूप में अपनाया गया और लोस एंजिल्स फ्री प्रेस में 7 नवम्बर 1969 को प्रकाशित किया गया और फिर इसे सार्वजानिक डोमेन में रखा गया। यह प्रतीक “E” व “O” अक्षरों के संयोजन से बनाया गया था जिन्हें क्रमशः “Environment” व “Organism” शब्दों से लिया गया था। यह थीटा चिन्ह जो इसके समान है, का उपयोग पूरे इतिहास में एक चेतावनी के रूप किया जाता रहा है।[तथ्य वांछित] लुक मैगजीन ने अपने 21 अप्रैल 1970 के अंक में एक ध्वज में इस प्रतीक को प्रस्तुत किया। इस ध्वज का प्रतिरूप संयुक्त राज्य के ध्वज के प्रतिरूप से लिया गया था और इसमें एक बाद एक तेरह हरी और सफ़ेद पट्टियां थीं। इसका केंटन पारिस्थितिक प्रतीक के साथ हरा था जहां तारे संयुक्त राज्य के ध्वज में थे। विज्ञापन मुद्रण लेखक जुलियन केनिग 1969 में नेल्सन की संगठन समिति में सीनेटर थे और उन्होंने इस घटना को “पृथ्वी दिवस” नाम दिया। इस नए आन्दोलन को मनाने के लिए 22 अप्रैल का दिन चुना गया, जब केनिग का जन्मदिन भी होता है। उन्होंने कहा कि किल “अर्थ डे” “बर्थ डे” के साथ ताल मिलाता है, इसलिए यह विचार उन्हें आसानी से आया।[5][6] 30 नवम्बर 1969 को न्यूयार्क टाइम्स में, सामने के पेज पर, एक लम्बे लेख में, ग्लेडविन हिल ने लिखा “पर्यावरण संकट” की बढती चिंता राष्ट्रों को प्रभावित कर रही है, जो छात्रों को वियतनाम में युद्ध में भाग लेने के लिए प्रेरित कर रही है।..पर्यावरण की समस्या के प्रेक्षण का एक राष्ट्रीय दिन, जो वियतनाम में सामूहिक प्रदर्शन के समान है, अगले वसंत के लिए इसकी योजना बनायी जा रही है, जब सीनेटर जेराल्ड नेल्सन के कार्यालय से समन्वित राष्ट्रव्यापी पर्यावरणी ‘शिक्षण’ का आयोजन किया जायेगा. [7] सेनेटर नेल्सन ने इस घटना में राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय के लिए डेनिस हायेस को भी नियुक्त किया। शुरुआत और जारी विकास संपादित करें 22 अप्रैल 1970 को पृथ्वी दिवस ने आधुनिक पर्यावरण आंदोलन की शुरुआत को चिन्हित किया। लगभग 20 लाख अमेरिकी लोगों ने, एक स्वस्थ, स्थायी पर्यावरण के लक्ष्य के साथ भाग लिया। हायेज और उनके पुराने स्टाफ ने बड़े पैमाने पर तट से तट तक रैली का आयोजन किया। हजारों कॉलेजों और विश्वविद्यालयों ने पर्यावरण के दूषण के विरुद्ध प्रदर्शनों का आयोजन किया। वे समूह जो तेल रिसाव, प्रदुषण करने वाली फैक्ट्रियों और उर्जा संयंत्रों, कच्चे मलजल, विषैले कचरे, कीटनाशक, खुले रास्तों, जंगल की क्षति और वन्यजीवों के विलोपन के खिलाफ लड़ रहे थे, ने अचानक महसूस किया कि वे समान मूल्यों का समर्थन कर रहें हैं। 200 मिलियन लोगों का 141 देशों में आगमन और विश्व स्तर पर पर्यावरण के मुद्दों को उठा कर, पृथ्वी दिवस ने 1990 में 22 अप्रैल को पूरी दुनिया में पुनः चक्रीकरण के प्रयासों को उत्साहित किया और रियो डी जेनेरियो में 1992 के संयुक्त राष्ट्र पृथ्वी सम्मलेन के लिए मार्ग बनाया। सहस्राब्दी की शुरुआत के साथ ही, हायेज ने एक अन्य अभियान के नेतृत्व के लिए सहमति जतायी, इस बार ग्लोबल वार्मिंग पर ध्यान केन्द्रित किया गया और स्वच्छ ऊर्जा को प्रोत्साहन दिया गया। 22 अप्रैल 2000 का पृथ्वी दिवस पहले पृथ्वी दिवस की उमंग और 1990 के पृथ्वी दिवस की अंतर्राष्ट्रीय जनसाधारण कार्यशैली का संगम था। 2000 में, इंटरनेट ने पूरी दुनिया के कार्यकर्ताओं को जोड़ने में पृथ्वी दिवस की मदद की। 22 अप्रैल के आते ही, पूरी दुनिया के 5000 समूह एकजुट हो गए और 184 देशों के सैंकडों मिलयन लोगों ने इसमें हिस्सा लिया। ऐसे विविध घटनाक्रम थे: गेबन, अफ्रीका में गाँव से गाँव तक यात्रा करने वाली एक बोलते ड्रम की श्रृंखला, उदाहरण के लिए जब सैंकडों हजारों लोग वाशिंगटन, डी.सी., संयुक्त राज्य अमेरिका में नेशनल मॉल में एकत्रित हुए. 2007 का पृथ्वी दिवस अब तक के सबसे बड़े पृथ्वी दिवसों में से एक था, जिसमें अनुमानतः हजारों स्थानों जैसे कीव, युक्रेन; काराकास, वेनेजुएला; तुवालु; मनीला, फिलिपींस; टोगो; मैड्रिड, स्पेन, लन्दन; और न्यूयार्क के करोड़ों लोगों ने हिस्सा लिया।[तथ्य वांछित] पृथ्वी दिवस नेटवर्क इक्विनोक्स (सम्पात या वर्ष का वह समय जब दिन और रात बराबर होते हैं) पृथ्वी दिवस के इतिहास 22 अप्रैल के अनुसरण सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ Last edited 9 minutes ago by 27.60.22.5 RELATED PAGES नेल्सन मंडेला अन्तर्राष्ट्रीय दिवस विश्व जल दिवस विश्व जल दिवस जेराल्ड नेल्सन सामग्री CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो।

By Sajjan Kumar.

Oil prices

Crude oil price plunges below

Oil transfering.

oil price plunges below zero for first time in unprecedented wipeout The price on the futures contract for WTI crude that is due to expire Tuesday fell minus $37.63 a barrel. By Bloomberg | Updated: Apr 21, 2020, 09.32 AM IST 0:00 / 1:10 US oil hits sub-zero for 1st time in history as coronavirus keeps people home By Catherine Ngai, Olivia Raimonde and Alex Longley Of all the wild, unprecedented swings in financial markets since the coronavirus pandemic broke out, none has been more jaw-dropping than Monday’s collapse in a key segment of U.S. oil trading. ADVERTISEMENT The price on the futures contract for West Texas crude that is due to expire Tuesday fell into negative territory — minus $37.63 a barrel. That’s right, sellers were actually paying buyers to take the stuff off their hands. The reason: with the pandemic bringing the economy to a standstill, there is so much unused oil sloshing around that American energy companies have run out of room to store it. And if there’s no place to put the oil, no one wants a crude contract that is about to come due. Underscoring just how acute the concern over the lack of storage is, the price on the futures contract due a month later settled at $20.43 per barrel. That gap between the two contracts is by far the biggest ever. ADVERTISEMENT “The May crude oil contract is going out not with a whimper, but a primal scream,” said Daniel Yergin, a Pulitzer Prize-winning oil historian and vice chairman of IHS Markit Ltd. “There is little to prevent the physical market from the further acute downside path over the near term,” said Michael Tran, managing director of global energy strategy at RBC Capital Markets. “Refiners are rejecting barrels at a historic pace and with U.S. storage levels sprinting to the brim, market forces will inflict further pain until either we hit rock bottom, or COVID clears, whichever comes first, but it looks like the former.” ADVERTISEMENT Since the start of the year, oil prices have plunged after the compounding impacts of the coronavirus and a breakdown in the original OPEC+ agreement. With no end in sight, and producers around the world continuing to pump, that’s causing a fire-sale among traders who don’t have access to storage. The extreme move showed just how oversupplied the U.S. oil market has become with industrial and economic activity grinding to a halt as governments around the globe extend shutdowns due to the swift spread of the Covid-19. An unprecedented output deal by OPEC and allied members a week ago to curb supply is proving too little too late in the face a one-third collapse in global demand. ADVERTISEMENT There are signs of weakness everywhere. Even before Monday’s plunge, buyers in Texas were offering as little as $2 a barrel last week for some oil streams. In Asia, bankers are increasingly reluctant to give commodity traders the credit to survive as lenders grow ever more fearful about the risk of a catastrophic default. In New York, West Texas Intermediate for May delivery dropped as low as negative $40.32 a barrel. It’s far below the lowest level previous seen in continuation monthly data charts since 1946, just after World War II, according to data from the Federal Reserve Bank of St. Louis. Brent declined 8.9% to $25.57 a barrel. Crude stockpiles at Cushing — America’s key storage hub and delivery point of the West Texas Intermediate contract — have jumped 48% to almost 55 million barrels since the end of February. The hub had working storage capacity of 76 million as of Sept. 30, according to the Energy Information Administration. Fund Inflow Despite the weakness in headline prices, retail investors are continuing to plow money back into oil futures. The U.S. Oil Fund ETF saw a record $552 million come in on Friday, taking total inflows last week to $1.6 billion. The price collapse is reverberating across the oil industry. Crude explorers shut down 13% of the American drilling fleet last week. While production cuts in the country are gaining pace, it isn’t happening quickly enough to avoid storage filling to maximum levels, said Paul Horsnell, head of commodities at Standard Chartered. ”The background psychology right now is just massively bearish,” Michael Lynch, president of Strategic Energy & Economic Research Inc said in a phone interview. “People are concerned that we are going to see so much build up of inventory that it’s going to be very difficult to fix in the near term and there is going to be a lot distressed cargoes on the market. People are trying to get rid of the oil and there are no buyers.” In Video: US oil hits sub-zero for 1st time in history as coronavirus keeps people home READ MORE:why is crude oil price falling today |Nirmala Sitharaman |KPMG |FM |crude oil price today |crude oil price |Companies Act |Budget speech Akshya Tritiya in lockdown? LATEST COMMENT GOVT NEEDS FUNDS THE RICH AND THEIR ASSOCIATIONS ARR ASKING FOR FISCAL STIMULUS TO PROTECT THEIR PROFITS THE SO CALLED FAKE POOR ARE ASKING FOR MORE FREEBIES AND SUBSIDIES AND DOLES AND ALMS. THE DISEASE DEMANDS MORE INVESTMENT BIN HEALTH. THE SLOWING DOWN OF ECONOMY GLOBALLY AND IN INDIA MEANS LESS REPATRIATION AND LESS REVENUE ALL THIS REQUIRES FUNDS .THE ONLY SOURCE IS FUEL .MAINTAINING FUEL PRICES WILL PREVENT ITS UN NECESSARY USAGE AND GENERATE INCOME FOR THE GOVT TO FINANCE THE VARIOUS INITIATIVES TO BACK THE COUNTRY’S ECONOMY BACK ON COURSE. – Kishore VIEW ALL 18 COMMENTADD COMMENT PREVIOUS Too much oil: How a barrel came to be worth less than nothing NEXT Gold drops to lowest in more than a week as dollar gains Most Recent Tatas gun for $1-billion ‘revolver lines’ to fund European operations Donald Trump is shutting down all immigration to US Coronavirus Updates: Tamil Nadu, Rajasthan case count hit 1500-mark; India tally at 17,656 Too much oil: How a barrel came to be worth less than nothing Most Read Crude oil price plunges below zero for first time in unprecedented wipeout Coronavirus Impact: Infosys suspends promotions and salary hikes Cognizant hit by ‘Maze’ ransomware attack View: If lockdown was managing public health, now comes the economic challenge ADVERTISEMENT Business News › Markets › Commodities › News › Crude oil price plunges below zero for first time in unprecedented wipeout POPULAR CATEGORIES StocksIPOs/FPOsMarkets DataMarket MogulsExpert economyCoronavirus impactBreaking newsSBI share priceYES Bank share priceSGX NiftySensex LiveIRCTC share priceInfosys share priceRupeeAadhaar CardGold Rate TodayHow to save Income TaxCurrency Converter IN CASE YOU MISSED IT GST CollectionJet Airway MORE FROM MY BLOG FOLLOW ME

These Simple Things

What things around you feel happy?

The simplest things in life are best

A patch of green,

A small bird’s nest,

A drink of water, fresh and cold,

The taste of bread,

A song of old;

These are the things that matter most.

The laughter of a child ,

A favourite book,

Flowers growing wild,

A cricket in a shady nook.

A ball that bounces high!

A rainbow in the sky,

The touch of a loving hand,

A time to rest_

These simple things in the life are best.

By Sajjan Kumar.

सुशासन बाबू के उच्च अधिकारी चौकीदार पर भारी।

भारतीय संस्कृति और संस्कार को तार तार करते सिनियर्टी सनक!

आदरणीय मुख्यमंत्री जी एवं DGP साहब (बिहार)

अभी अभी अखबार में देख रहा हूं , अररिया में एक होमगार्ड सड़क किनारे कान पकड़ के उठक-बैठक कर रहा है। उसके सिनियर उसे डांट रहे हैं। उठक-बैठक के बीच में ना रुकने का, तालिबानी फरमान भी दिया जा रहा है। सिनियर ऑफ़िसर कहते हैं कि उस गार्ड ने कृषि अधिकारी से “पास” मांग कर, डिपार्टमेंट की प्रतिष्ठा का हनन किया है।
उठक-बैठक से मन नहीं भरता है तो उक्त कृषि अधिकारी के चरणों में वो असहाय गार्ड अपना मस्तक रखता है, दया की भिख मांग रहा है।
धूप बहुत है। डरा हुआ वो गार्ड कान पकड़ कर अभी खड़ा है ,उसके चेहरे पर जो काला कपड़ा बंधा था , नीचे खिसक चुका है ,उसकी ऊजली-काली मूछें दीख रही है,उसकी आँखें सन्नाटे में है,दया के लिये जबड़े स्थिर और लाचार है, शयाद उसकी नसों में अब वो शक्ति नहीं कि आह भी निकाल सके मुंह से ,उसके अंदर रक्त-रूदन चल रहा है।
एक प्रौढ़ इन्सान मृत खड़ा है। पदाधिकारियों के जूतों के नीचे उसकी प्रतिष्ठा और कर्तव्य-परायणता कुचली जा चुकी है। ये रूदन,ये विलाप जो उसका हृदय कर रहा है ,वो बिहार को अभिशप्त करने वाली है। वो तार-तार हो चुका है; माने,आप DGP साहब,आपके कर्तव्य निष्ठ होने का उद्घोष जिन्दगी के लिये पानी मांग रहा है। उक्त अधिकारी के चरणों पे पड़ा वो मस्तक,उसका तो है ही ,आपका भी है,पूरे बिहार प्रशासन का है,पूरे बिहार का है ,हमारा है।
अब क्या करेंगे?
प्रशासन का कोई भी अधिकारी या कर्मचारी यदि कर्तव्य पालन कर रहा है तो उसकी रक्षा,उसके मान को बचाना और उसके साहस को दृढता देना आपका परम कर्तव्य है; नहीं है तो होना चाहिये।
आप बहुत विडियो बनाते हैं,वादा करते हैं ,अपना यश गान करते हैं ,
तो निभाइये,अपना कर्तव्य…,
और फिर कोई और विडियो बना कर अपना गौरव-गान कीजियेगा।

सज्जन कुमार यादव (छात्र परिषद)

तालिबानी फरमान। उच्च अधिकारी के सामने हाथ जोड़कर खड़े बुजुर्ग चौकीदार।

भाजपा सरकार के गैर- जिम्मेदारी के कारण Corona वायरस से लड़ रही है देश।

अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के पूर्व सदस्य सह फिल्म सेंसर बोर्ड के परामर्श दात्री समिति भारत सरकार के पूर्व सदस्य ललन कुमार ने कहा कि मोदी सरकार की गैर-गंभीरता, गैर-जिम्मेवारी के कारण, देशवासियों को कोविड-19 की इस प्राकृतिक आपदा को भुगतने के लिए मजबूर किया गया है। अब इस चुनौती का सामना करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। लॉकडाउन लागू करने में भी स्थिति को यत्नपूर्वक नहीं संभाला जा रहा है। सरकार ने मानव जीवन के ऊपर राजनीति को प्राथमिकता दी थी। प्रकृति ने हमें इस घातक वायरस से बचाने के लिए खुद को तैयार करने के लिए पर्याप्त समय दिया था, जो पहले से ही दुनिया के कई हिस्सों में फैल चुका था, लेकिन उस बहुमूल्य समय को बिना किसी कार्रवाई मेादी सरकार ने खो दिया था।

क्यों नहीं विदेश से उतरने वाले सभी लोगों की जांच की गई और उन्हें 14 दिन के लिए सरकार के नियंत्रण के तहत क्वारंटाइन में डाला गया। बीमारी को लेकर आए सभी सम्पन लोग और मुश्किलें पैदा कर दी गई आम आदमी, विद्यार्थियों और मजदूरों के लिए यह कहां का न्याय है। मोदी सरकार अपनी भूल को स्वीकार करने के बजाय, देश के लोगों को बताएगी कि अन्य देशों की तुलना में यहां संक्रमित लोगों और मौतों की संख्या बहुत कम है। क्योंकि मोदी सरकार ने सही समय पर कदम नहीं उठाए हैं। वास्तविक कारण हैं, सरकार ने करोना के टेस्ट ही ऊंठ के मुंह में जीरे के बराबर किए, और इसलिए कोई पुष्टि नहीं कि जा सकती है कि कौन पीडि़त है और कौन नहीं है, और दूसरा यह है कि हमारे लोग विशेष रूप से हमारे मजदूर भाई और आम लोग जो कड़ी मेहनत करते हैं, उनमें अधिक इम्यूनिटी होती है। मैंने कई रिसर्चर्स से सुना कि अच्छी इम्यूनिटी वाले लोग इस वायरस से बच सकते हैं। इसलिए मैं आप सभी से प्रार्थना करता हूं कि झूठे और औचित्य तर्कों के चक्कर में मेरे प्यारे भारतवासी ना आए और इस एनडीए सरकार से सावधान रहें तथा इनसे सवाल करें की देशवासियों को इस बीमारी में क्यों फंसाया।

फेफारा (lungs)

लोकडॉन का नाजायज फायदा।

विक्रम पौद्दार(obc) का ग़ैरजाति से प्रेमप्रसंग का मामला होता है लड़की की जाति के थाना प्रभारी भी होते हैं, जिसके चलते थाना-बीरपुर प्रभारी विक्रम पौद्दार को तीन दिन पुलिस कस्टरडी में रखते हैं 23 मार्च को घर वाले को खबर मिलती है कि वो पुलिस कस्टरडी में खुद फाँसी लगा लिये हैं।

इस मामले को #सामाजिककार्यकर्ता युवा बिर्गेड के नेता #संतोषकुमार_शर्मा पुलिस प्रशासन को कटघरे में रखते हैं और सोशल मीडिया पर सवाल करते हैं कि लॉकडाउन की आर में विक्रम पौद्दार के साथ नाइंसाफी नही होने देंगे।

6 अप्रैल को शाम 6 बजे #नावकोठी_थाना संतोष को इस आधार पर उठा ले जाती है कि वो #लॉकडाउन का उलंघन किया हैं 9 बजे उसे छोड़ देती है फिर वो लोगों को बताते हैं कि पुलिस ने हमे थाने के बजाय जंगल में ले गई थी और दो घंटा तक खूब पीटा है उनकी तबियत खराब हो जाती है 8 अप्रैल को बेगूसराय सदर अस्पताल में इलाज करवाते हैं,फिर प्राइवेट डॉक्टर से भी दिखवाते हैं फिर भी उनका तबियत ठीक नही होता है कल दिनांक 17 अप्रैल को उन्हें igims पटना रेफर किया जाता है और रात 2 बजे उनकी मौत हो जाती है।

ये दोनों हत्या नीतीश कुमार के प्रशासन द्वारा किया गया है हम सरकार से मांग करते हैं कि इस मामले को उच्च स्तरीय जांच कर तानाशाह पुलिस प्रशासन को बर्खास्त करें और सामाजिक कार्यकर्ता संतोष कुमार सहित विक्रम को न्याय दें अन्यथा हमलोग लॉकडाउन के बाद आंदोलन का रास्ता अपनाएंगे। रंजीत कुमार
कथित हिंदुत्व के नाजायज औलाद बताओ क्या संतोष शर्मा हिंदू का बेटा नहीं था । आज तुम सब की चुप्पी तुम्हारे दोगलाई सोच को दर्शाने के लिए काफी है । साथियों चुप्पी तोरो आज विक्रम पोद्दार और संतोष शर्मा मारा गया कल किसी और कि बारी आएगी ।

मृत विक्रम पोद्दार।
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